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Showing posts from September, 2020

नज़ीर नज़र की ग़ज़ल

अगर वो हादिसा फिर से हुआ तो मैं तेरे इश्क़ में फिर पड़ गया तो कि उस का रूठना भी लाज़मी है मना लूँगा अगर होगा ख़फ़ा तो मिरी उलझन सुलझती जा रही है दिखाया है तुम्ही ने रास्ता तो यक़ीनन राज़-ए-दिल मैं खोल दूँगा दिया अपना जो उस ने वास्ता तो चलो कुछ देर रो लें साथ मिल कर कोई लम्हा ख़ुशी का मिल गया तो तुझे महफ़ूज़ कर लूँ ज़ेहन-ओ-दिल में मिला है तू कहीं फिर खो गया तो नया रिश्ता निभाने की तलब में अगर टूटा पुराना राब्ता तो कलेजे से लगा कर रखते हम भी हमें वो राज़ अपने सौंपता तो 'नज़र' तुम ज़िंदगी समझे हो जिस को फ़क़त पानी का हो वो बुलबुला तो ~ नज़ीर नज़र