अगर वो हादिसा फिर से हुआ तो मैं तेरे इश्क़ में फिर पड़ गया तो कि उस का रूठना भी लाज़मी है मना लूँगा अगर होगा ख़फ़ा तो मिरी उलझन सुलझती जा रही है दिखाया है तुम्ही ने रास्ता तो यक़ीनन राज़-ए-दिल मैं खोल दूँगा दिया अपना जो उस ने वास्ता तो चलो कुछ देर रो लें साथ मिल कर कोई लम्हा ख़ुशी का मिल गया तो तुझे महफ़ूज़ कर लूँ ज़ेहन-ओ-दिल में मिला है तू कहीं फिर खो गया तो नया रिश्ता निभाने की तलब में अगर टूटा पुराना राब्ता तो कलेजे से लगा कर रखते हम भी हमें वो राज़ अपने सौंपता तो 'नज़र' तुम ज़िंदगी समझे हो जिस को फ़क़त पानी का हो वो बुलबुला तो ~ नज़ीर नज़र
Comments
Post a Comment